हाँ, अनादि!
अब कहाँ रहा जुग
पहले जैसा।
पहले घर-घर आम्र मंजरी
की पूजा करते थे
एक पेड़ की शाखें जैसी
सब मिलकर रहते थे
स्नेहिल मन !
वह लोक कहाँ हैं
पहले जैसा।
पहले वाली हवा बसंती
हुई आज जहरीली
गंगाजल की जगह सभी ने
देखो मदिरा पी ली
नेम-धरम
की जगह जरूरत
केवल पैसा।
सहे सभी ने सुख दुख मिलकर
उत्सव थे गलबाँही
गली, मुहल्ले नाम धरे थे
पर थी आवाजाही
हाल-चाल
अब नहीं पूछते
पहले जैसा।